"साहिब बंदगी" का अर्थ क्या है?
"साहिब" सर्वोच्च सत्ता यानि परमपुरुष है और "बंदगी" यानी प्रणाम। इसलिए, "साहिब बंदगी" का अर्थ "परमपुरुष को प्रणाम" है। परमपुरुष हर जीव में आत्मा के रूप में मौजूद है क्योकि आत्मा स्वयं परमपुरुष का अंश है।
"संत सतगुरु" शब्द का अर्थ क्या है और इसकी उत्पत्ति कहाँ से हुई?
संत सतगुरु वह है, जिसकी आत्मा परमपुरुष / साहिब से मिल चुकी है। संत सतगुरु कर्म, जन्म-मृत्यु, निराकार मन, शरीर और ब्रह्मांड के उलझाव से मुक्त हैं। यह शब्द "संत सम्राट सतगुरु कबीर साहिब" द्वारा दी गयी सच्ची आध्यात्मिक शिक्षाओं द्वारा अस्तित्व में आया।
"कबीर" शब्द का क्या अर्थ है?
शुद्ध चेतना जिसका अस्तित्व पांच तत्व (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश), निराकार मन और शरीर से परे है और जो हर जीवित प्राणी में मौजूद है को "कबीर" की संज्ञा दी गई।
क्या हर गुरु एक सतगुरु है?
गुरु सभी के जीवन में सबसे सम्मानित व्यक्ति होता है। जन्म से लेकर मृत्यु तक एक व्यक्ति का गुरु किसी न किसी तरीके से बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
गुरु सात प्रकार के होते हैं -
• माँ / पिता जो हमें इस दुनिया में लाए,
• दाई या नर्स जो हमें हमारी माँ के गर्भ से बाहर निकलने में मदद करती है,
• वो व्यक्ति जिसने हमारा नाम रखा जिससे हम इस दुनिया में जाने जाते हैं
• हमारे स्कूल / कॉलेज में शिक्षक जिन्होंने हमें पढ़ाया है,
• पुजारी जो हमारे सभी संस्कारों को करता है जैसे जन्म, यज्ञोपवीत आदि
• जो पुजारी हमारी शादी करवाता है
परन्तु, ये गुरु हमें मोक्ष नहीं दिला सकते। ज्यादा से ज्यादा वे हमारा मार्गदर्शन कर सकते हैं कि जीवन में आनंद कैसे प्राप्त करें या निर्वाण कैसे प्राप्त करें। लेकिन मन और माया बहुत शक्तिशाली हैं और किसी को भी अपने जाल से इतनी आसानी से निकलने नहीं देते। इस संसार सागर से छुटकारा पाने के लिए हमें एक ऐसे गुरु की आवश्यकता है जो मन और शरीर की सभी बुराइयों से हमारी रक्षा करे। यह काम केवल एक पूर्ण सतगुरु द्वारा ही किया जा सकता है। उनके पास
"पारस सुरति"होती है जिसके द्वारा वे आत्मा के ऊपर से मन की छाया को हटा देते हैं। केवल नाम की प्राप्ति के बाद ही एक व्यक्ति इस संसार सागर से छुटकारा पा सकता है।
निरंजन / काल निरंजन / काल पुरुष / मन कौन है?
जब परमपुरुष ने "ज्योति निरंजन", शब्द का उच्चारण किया, तो पाँचवाँ पुत्र "निरंजन" अस्तित्व में आया (परमपुरुष के सभी 16 पुत्र उनके शब्दों की शक्ति से अस्तित्व में आए न की किसी यौन क्रिया से)। उसे विभिन्न नामों से पुकारा जाता है - काल, निरंजन, काल पुरुष इत्यादि और वह प्रत्येक प्राणी में अदृश्य मन के रूप में रहता है। निरंजन ने त्रिलोक (ब्रह्माण्ड) की रचना की हैं। निरंजन को राम, हरि, नारायण, ब्रह्मा, पार ब्रह्म, परमात्मा, भगवान, परमेश्वर, खुदा, God, निराकार, ओमकार, निर्गुण ब्रह्म आदि शब्दों से भी संबोधित किया जाता है।
पांच तत्व क्या हैं?
पूरे ब्रह्मांड को बनाने वाले पांच तत्व हैं:
• पृथ्वी
• जल
• अग्नि
• वायु
• आकाश
ये पांच तत्व अस्तित्व में कैसे आए?
परमपुरुष ने पाँच शब्दों का उच्चारण किया जिसमें से पाँच तत्वों का उत्पादन हुआ।
• "सत्" शब्द से पृथ्वी बनी
• "ओमकार" शब्द से पानी उत्पन्न हुआ
• "ज्योति निरंजन" शब्द से अग्नि की उत्पत्ति हुई
• "सोहंग" शब्द से वायु उत्पन्न हुई
• "र-रंकार" शब्द से आकाश की उत्पत्ति हुई
क्या आत्मा सच्चे सतगुरु की कृपा के बिना स्थायी मोक्ष प्राप्त कर सकती है?
नहीं, आत्मा एक सच्चे सतगुरु की कृपा के बिना निराकार मन, शरीर, कर्म, जन्म-मृत्यु और ब्रह्मांड के उलझाव से स्थायी मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकती है। उसके पास "पारस सुरति" (परम एकाग्रता) है जिससे वह शिष्य की आत्मा को चेतन करता है और फिर उसे नाम देता है।
ब्रह्मांड की रचना किसने और क्यों की?
निरंजन (निराकार मन) ने पांच तत्वों की मदद से इस ब्रह्मांड (त्रिलोक) का निर्माण किया है। निरंजन स्वयं पाँचवें तत्व आकाश (शून्य/अंतरिक्ष) में रहता है। निरंजन ने सिर्फ आत्माओं पर शासन करने के लिए इस ब्रह्मांड का सृजन किया है। इस ब्रह्मांड में सब कुछ पूरी तरह से नाशवान है और एक दिन नष्ट हो जाएगा लेकिन निरंजन नें चतुराई से सभी को यह विश्वास दिलाया कि सब कुछ अविनाशी है। उसने जाल बुना है जिसमें आत्मा उलझ गयी है। इस जाल के बिना हमारी आत्मा को यहाँ रहने का कोई उद्देश्य नहीं होता और वह अपने स्थायी निवास - अमरलोक / सतलोक चली जाती।
पूरे ब्रह्मांड को कौन चलता है?
निरंजन, जिसे मूर्ति और निराकार ईश्वर (वास्तविक आध्यात्मिक ज्ञान की कमी के कारण) के रूप में दुनिया के हर एक धर्म में पूजा जा रहा है, इस ब्रह्माण्ड को अपने निवास स्थान शून्य से चला रहा है। निरंजन हर जीवित प्राणी में "मन" (निराकार मन) के रूप में मौजूद है।
देवी, देवताओं, ऋषियों, मुनियों, पुजारियों, पीर, पैगम्बरों, योगियों, योगेश्वरों के रूप में किसने अवतार लिया?
निरंजन (निराकार मन) ने देवी-देवताओं, ऋषियों, मुनियों, पुजारियों, पीर, पैगंबरों, योगेश्वरों आदि रूपों में अवतार लिया ताकि वह आत्माओं (परमपिता परमात्मा का हिस्सा) को गुमराह कर सके जिससे कोई भी आत्मा तीनों लोकों (त्रिलोक) से बच कर निकल न पाए।
क्या परमपुरुष सच में है या यह सिर्फ किसी की कल्पना है?
परमपुरुष निश्चित रूप से है। परमपुरुष का अस्तित्व ५ नाशवान तत्वों, शब्द, निराकार मन, शरीर, धर्म और ब्रह्मांड से परे है। एक सच्चे सतगुरु की कृपा के बिना परमपुरुष की प्राप्ति कभी संभव नहीं है।